लेखनी प्रतियोगिता -06-Aug-2023... दो कप चाय...
अरे आप आ गए सर....
आप अपनी सीट पर बैठिये... मैं अभी आपके लिए आपकी पसंद की अदरक वाली चाय लेकर आया...।
अनिल मुस्कुरा कर अपनी हर रोज़ वाली जगह पर जाकर बैठ गया ओर अपना लेपटॉप निकाल कर उसमें काम करने लगा...।
थोड़ी देर में एक वेटर आया ओर बोला :- गुड मॉर्निंग सर..। आपकी चाय..।
थैंक्यू...।
अनिल ने मुस्कुरा कर कहा.. ओर सामने रखें दो कप में से हर रोज की तरह एक कप सामने की कुर्सी की तरफ़ रखा... ओर दूसरे कप को उठाकर काम करते करते चाय पीने लगा..। चाय खत्म करने के भी दस मिनट तक अनिल वहीं बैठा रहा फिर दो कप चाय के पैसे देकर अपने गंतव्य पर चल दिया...। ये रुटिन अनिल का रोज का था..। अपने घर से आफिस के लिए निकलते वक्त थोड़ी दूरी पर बने एक छोटे से रेस्टोरेंट पर आता... तय की हुई कुर्सी पर बैठता... दो कप चाय का आर्डर देता... लेकिन एक कप ही पीता.. पर पैसे दोनों कप के देता... फिर आफिस की ओर चल देता...।
रेस्टोरेंट के मालिक ने ओर वहां मौजूद स्टाफ ने बहुत बार अलग अलग तरीके से इसके पीछे का कारण जानने की कोशिश की पर अनिल हर बार सभी को सिर्फ एक प्यारी सी मुस्कान ही देता.. जवाब कभी नहीं देता..। धीरे धीरे लोगों ने पूछना भी बंद कर दिया..। लेकिन अनिल अपना रुटिन कभी बंद नहीं करता...। आफिस की छुट्टी होने पर या रविवार के दिन भी अनिल वहां सुबह की चाय पीने हर रोज़ आता..। हां अगर कभी वो रेस्टोरेंट बंद होता तो ही अनिल अपना रुटिन मिस करता... पर सालों से ऐसा ना के बराबर ही हुआ होगा की वो रेस्टोरेंट बंद हो...।
सालों से ये सिलसिला ऐसे ही लगातार चलता रहा...। एक दिन अनिल रोज़ की तरह रेस्टोरेंट में आया..। पर उस दिन कुछ अलग हुआ...। रेस्टोरेंट का मालिक आज वहां नहीं था.....। कुछ स्टाफ भी अलग था...। एक वेटर आया ओर अनिल से आर्डर लिया...। अनिल ने दो कप अदरक वाली चाय का आर्डर दिया ..... इस पर वेटर बोला :- लेकिन सर आप तो अकेले हैं फिर दो कप...।
अनिल मुस्कुराया ओर कहा :- लगता हैं आप नये हो..!
जी सर कल रात से ही आया हूँ..।
हम्म... तभी...। आप वो सब छोड़िये ओर दो कप ले आइये..।
ठीक हैं सर..।
कुछ देर में अनिल हर बार की तरह एक कप चाय पीकर, दूसरी ऐसे ही छोड़कर पैसे देकर जाने लगा... तो वो वेटर दौड़ता हुआ उनके पास गया ओर बोला :- सर.... बुरा ना माने तो एक बात कहें... ये इस तरह से आप पैसे की बर्बादी कर रहें हैं... इससे तो अच्छा हैं.... आप ये दूसरी चाय किसी जरुरतमंद को पिला दे...
मुझे स्टाफ के लोगों ने बताया आपके बारे में....।
अनिल ने उसकी तरफ़ देखा ओर मुस्कुरा कर वहां से जाने लगा...।
लेकिन वो वेटर लगातार उस पर जली कटी बातें बोले जा रहा था...। आप जैसे बड़े लोग...गाड़ियों में घुमने वाले...मंहगी मंहगी घड़ियाँ और सूटबूट पहनने वाले क्या जाने इस कप चाय की ओर उस पर दिए दस बीस रुपये की क्या कीमत हैं....।
अनिल अभी भी खामोशी से मुस्कुरा कर सब सुन रहा था...। उसने पलटकर कुछ नहीं कहा..। आखिर कार वो वेटर उसे कुछ अपशब्द कहता हुआ भीतर चला गया..।
अनिल बाहर अपनी गाड़ी तक आया... फिर अचानक से वापस रेस्टोरेंट की तरफ़ चल दिया...। वो भीतर आया... तब तक रेस्टोरेंट का मालिक भी आ गया था..।
वो अनिल को देखकर बोला :- क्या हुआ सर...आपको कुछ ओर भी चाहिए क्या..?
नहीं.... दिनकर साहब.... कुछ चाहिए नहीं... बस वो आपके उस नये वेटर को भूला लिजिए... मुझे उससे कुछ बात करनी हैं..।
मालिक डरते हुए :- क्या हुआ... कुछ बोल दिया क्या उसने...!
आप बुलाइये तो..।
दिनकर ने आवाज लगाकर उसे बुलाया..।
वेटर अनिल को देखकर थोड़ा घबरा तो गया था....। उसे लगा अनिल ने उसकी शिकायत कर दी हैं...।
वेटर के आते ही अनिल ने मुस्कुरा कर कहा :- डरो मत.... मैं तुम्हें कोई अपशब्द कहने या तुम्हारी शिकायत करने नहीं आया हूँ....। बस आज वो बताने आया हूँ ...जो आज तक किसी को नहीं बताया...। मैं एक एक कर आपके सभी बातों को रखता हूँ...।
सबसे पहले तो ये की मैं अपने हिसाब से... अक्सर जरुरतमंदों की मदद करता रहता हूँ...। जितना मैं कर सकता हूँ...। बिना किसी को कुछ बताएं ओर जताएं....।
रहीं बात दो कप चाय लेने की तो वो दूसरा कप मैं अपने दोस्त के लिए लेता हूँ...।
वो रोज आता हैं मेरे साथ चाय पीने...।
मैं जानता हूँ आप सब मुझे पागल समझ रहें होंगे... पर ये सच हैं..।
आज से लगभग बीस साल पहले की बात हैं....। मैं और मेरा दोस्त अमन पढ़ाई के लिए इस शहर में आए थे...। हम पहली बार इस शहर में ही मिले थे...। दोनों एक ही हास्टल में रहते थे..। एक ही कमरे में..। वक्त के साथ साथ हमारी दोस्ती भी परवान चढ़ती गई....। हम दोनों ने पढ़ाई पूरी की ओर इसी शहर में हम दोनों को नौकरी भी मिल गई..। लेकिन वक्त ने इस बीच हमारे अपने हमसे छीन लिए...। हम दोनों अकेले हो गए..। तब हम ने एक छोटा सा घर खरीदा ओर दोनों एक दूसरे का सहारा बनकर साथ रहने लगे..। साथ में उठना, बैठना, खाना -पीना ,सोना , घुमना.... हम एक दूसरे के बिना अधूरे थे..। हम जब छोटे थे... तब से इस रेस्टोरेंट में कई बार चाय ओर नाश्ता करने आते थे...। उस वक्त ये रेस्टोरेंट दिनकर जी के पिताजी संभालते थे...। कई बार बाबुजी हम दोनों की दोस्ती की खातिर पैसे कम होने पर मुफ्त में चाय भी पिला देते थे...। हम दोनों से सब कुछ बन जाता था.... पर चाय कभी नहीं बन पाती थीं... या फिर यूं समझों हम अच्छी चाय बनाना ही नही चाहते थे.... ताकि हम यहां आ सकें..। हम हमेशा एक ही जगह पर आकर चाय पीते थे...।
भले ही हम एक घर में रहते थे....पर आफिस के काम और थकावट की वजह से एक दूसरे से बात नहीं कर पाते थे....क्योंकि एक तो आफिस अलग अलग.....दूसरा कभी उसका ओवर वर्क तो....कभी मेरा.....। इसलिए हर रोज़ सुबह की चाय पीने यहाँ आते थे......। चाय के साथ बिताये उस आधे घंटे में हम अपनी जिंदगी सिर्फ अपने लिए जीते थे....।
लेकिन वक्त को शायद कुछ ओर ही मंजूर था...। एक रोज़ हम यहाँ अपनी बाइक से आ रहें थे ....की सामने की सड़क पर एक बच्ची दौड़ी आ रहीं थीं... उसकी माँ उसके पीछे पीछे दौड़ रहीं थीं... दोनों माँ बेटी पता नहीं कैसे सड़क के बीचोबीच आ गई...शायद बच्ची किसी चीज़ के पीछे भाग रहीं थी...ओर उसकी माँ उसको पकड़ने के लिए दौड़ रहीं थी....। दूसरी ओर से एक तेज रफ्तार कार हार्न मारती हुई उनकी तरफ़ ही दौड़ी आ रहीं थीं... । अमन जो बाइक पर पीछे बैठा था....वो बिना कुछ सोचे चलतीं बाइक से उन दोनों को बचाने के लिए कूदा.... वो दोनों तो बच गई..... पर अमन.......। कार वाला उसे दूर तक घसीट कर ले गया....ओर वो.....मारा गया....। कार वाला बिना रुके पलभर में गायब हो गया...। सब कुछ इतना जल्दी हुआ की मैं कुछ समझ ही नहीं पाया...।
जब तक समझ आया तब तक अमन...... मुझे छोड़ कर जा चुका था....। हमेशा हमेशा के लिए....।
उस दिन से मैंने इस जगह पर आना ही छोड़ दिया था....। चाय पीनी भी बंद कर दी थीं....।
लेकिन एक रोज़ आफिस के किसी शख्स के साथ महीनों बाद इस जगह मजबूरी में आना पड़ा...। यहाँ बहुत कुछ बदल चुका था.... बाबुजी भी नहीं थे...। लेकिन यहाँ का फर्नीचर वैसा ही रखा हुआ था...।
यहाँ आया तो मुझे उसी टेबल पर अमन बैठा हुआ दिखा...। मुझे देखते ही वो बोला :- यार.... कहाँ रह गया था... कितने महीनों से तेरा इंतजार कर रहा था... मुझे पता था... तु कभी ना कभी इधर जरूर आएगा...। चल अभी फटाफट चाय पिला...ओर हां बिल तुझे ही देना हैं....। मैं कुछ नहीं देने वाला.... ये इंतजार करवाने की सजा हैं...।
मैं कुछ समझ नहीं पाया ओर वहां से काम खत्म कर दौड़ता हुआ अपने घर चला गया...। बहुत दिनों तक खुदको एक कमरे में बंद कर लिया...। लेकिन मैं ज्यादा वक्त ऐसे नहीं रह सका...। आखिर कार हिम्मत करके एक बार यहाँ वापस आया...। अमन अभी भी वही था....। मैं उसके पास गया ओर उसके कहने पर दो कप चाय मंगवाई..। उसने चाय तो नही पी.... पर मुझसे बातें बहुत सारी की...।
धीरे धीरे.... मैं संभलने लगा.... ओर फिर रोज़ यहाँ आने लगा...। वो आज भी हर रोज मुझे दिखता हैं... मुझसे बातें करता हैं... अपनी वो ही घटिया सी शायरियाँ सुनाकर मुझे हंसाता हैं...।
मैं जानता हूँ आप सब शायद मेरी बात पर यकीन नहीं करेंगे... पर मेरे साथ सच में ऐसा हो रहा हैं...। क्या सही... क्या गलत... मुझे नहीं पता.... मैं बस वो दूसरा कप चाय का.....ऐसे ही व्यर्थ नही करता... वो अमन के लिए रखता हूँ... हर रोज...। मैं जानता हूँ... वो इसे आकर .....कभी पीने नहीं वाला... लेकिन फिर भी ऐसे ही रखूंगा... हर दिन....। चाहे आप सब इसे मेरा पागलपन कहें.... या कुछ ओर...। लेकिन इस एक कप चाय से मुझे सुकून मिलता हैं... । अपनी दोस्ती के लिए इतना तो मैं कर सकता हूँ ना...।
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दैनिक प्रतियोगिता के लिए....।
Mohammed urooj khan
25-Oct-2023 02:32 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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